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History of KamruNag

Kamru Nag History

कमरू नाग का इतिहास

हिमाचल प्रदेश यहां स्थित बहुत से प्रसिद्ध मंदिरों के लिए जाना जाता है| हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है| यहां पर बहुत से देवी देवताओं के मंदिर है| जिनमें से एक है कमरुनाग| यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में स्थित है| यह मंदिर यहां चमत्कार और कलाओं के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है अपितु यह मंदिर के सामने स्थित झील के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है| यह झील कमरूनाग झील के नाम से जानी जाती है| यह हिमाचल प्रदेश की बड़ी झीलों में से एक है| कमरूनाग देवता को वर्षा का देवता भी कहा जाता है| कमरू नाग देवता जी का मंदिर मंडी जिले के कमराह नामक गांव में स्थित है| यह मंदिर चारों दिशाओं से बहुत घने जंगलों से घिरा है| यह मंदिर बहुत ऊंचाई पर स्थित है जिसके कारण यह स्थान बर्फ से काफी महीने ढका रहता है|

कमरूनाग झील और मंदिर हिमाचल प्रदेश के जाने माने मंदिरों में से एक है| इसका नाम सिर्फ झील और मंदिर के लिए ही नहीं है बल्कि यह प्रति वर्ष यहां होने वाले मेले के लिए भी प्रसिद्ध है| यह मेला प्रतिवर्ष 14 या 15 जून को होता है| यह हिंदू कैलेंडर के हिसाब से 1 तारीख को होता है और हिमाचली भाषा मैं इस दिन को साजा कहा जाता है| इस मेले के दौरान हिमाचल से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी बहुत से श्रद्धालु ऊंची चढ़ाई चढ़कर कमरूनाग का दर्शन पाने आते हैं| यूं तो इस मंदिर को जाने के लिए काफी रास्ते हैं जिनमें से एक मंडी से 60 किलोमीटर की दूरी में स्थित रोहंडा नामक स्थान से शुरू होता है| रोहंडा से पत्थरों के बीच सीधी चढ़ाई लगभग 8 किलोमीटर चढ़ने के बाद श्रद्धालुओं को अपनी मंजिल अपना मुकाम और कमरूनाग जी का दर्शन हासिल होता है| यह चढ़ाई चढ़ने में सामान्य रूप से 3 घंटे पैदल चलना पड़ता है|

देव कमरुनाग को वर्षा का देवता माना जाता है| प्राचीन मान्यता के अनुसार यहां पर सोना चांदी तथा रुपय पैसे झील में डाले जाते हैं| मेले के दौरान इस झील में लोग बहुत मात्रा में आभूषण डालते हैं| मेले के बाद मंदिर कमेटी के सदस्य झील से नोटों को तो बाहर निकालते हैं परंतु सोने चांदी को बाहर नहीं निकाला जाता| इसीलिए कहा जाता है कि इस झील की गहराई में अरबों का सोना चांदी डूबा पड़ा है| श्रद्धालु देव कमरुनाग जी से मन्नत मांगते हैं और चढ़ावे को झील में डाल देते हैं| इस मंदिर के आसपास एक सांप जैसा दिखने वाला छोटा सा पौधा उगा होता है जिसे नागफनी या कोबरा लिली के नाम से जाना जाता है| यह माना जाता है कि यह देवता जी का साक्षात रूप है| देव कमरूनाग झील में दबे अरबों के खजाने की रक्षा करते हैं|

सभी मंदिर और देवताओं का अपना एक इतिहास होता है| वैसे ही कमरूनाग जी के बारे में माना जाता है की वह महाभारत काल में सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक थे| जिन्हें बबरूभान नाम से जाना जाता था| महाभारत के युद्ध से पहले उन्होंने कहा था कि जो पक्ष हारने लगेगा मैं उसकी ओर से लड़ूंगा| यह बहुत ही शक्तिशाली योद्धा थे| जिस वजह से श्री कृष्ण को डर लगा कि कहीं यह कौरवों की ओर से युद्ध में भाग ना ले ले और कौरव युद्ध में जीत जाए| तो श्रीकृष्ण ने इन्हें अपनी चाल में फंसाने का सोचा| श्री कृष्ण जी ने बबरू भान जी के साथ एक शर्त लगाई| शर्त यह थी की बबरू भान जी को एक वृक्ष के सभी पत्तों में एक तीर से छेद करना था| क्योंकि बबरू भान जी बहुत ही शक्तिशाली योद्धा थे उन्होंने वैसा ही किया उन्होंने हर एक पत्ते को अपने तीर से छेदा| परंतु वे श्री कृष्ण जी की चाल में फंस गए और वह शर्त हार गए| ऐसा इसलिए था क्योंकि श्री कृष्ण जी ने एक पत्ता अपने पांव के नीचे दबा रखा था जिसे छेदना बबरू भान जी भूल गए| जैसा की शर्त मैं निर्धारित था कि जो हारेगा अपनी जान गवा बैठेगा|

सुदर्शन चक्र से श्री कृष्ण जी ने बबरू भान जी का सिर काट दिया| बबरू भान जी ने एक इच्छा जाहिर की कि वह युद्ध को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं| इसी वजह से श्री कृष्ण जी ने उनके सिर को हिमालय के एक पर्वत में रख दिया जिसेआज कमरुनाग के नाम से जाना जाता है| वहीं से बबरू भान जी ने कुरुक्षेत्र का युद्ध देखा था| यही प्राचीन कथा कमरू नाथ जी के बारे में जानी जाती है|

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